आखिर क्यों भारत माता के निर्भय सेनानी कहलाते हैं सरदार पटेल ?

लोह पुरुष कहलाने वाले आखिर क्यों भारत माता के निर्भय सेनानी कहलाते हैं सरदार पटेल ? जानेंगे इस लेख में . 

भारत माता के निर्भय सेनानी - सरदार पटेल {Bharat Mata's fearless fighter - Sardar Patel }


सरदार वल्लभभाई पटेल


 सन् १६४८ का वर्ष भारत की राजनैतिक परिस्थिति की दृष्टि से बड़ा हलचल पूर्ण था। अगस्त १६४७ में जैसे ही देश को स्वतंत्रता प्राप्त हुई, चारों तरफ अशांति का वातावरण दिखाई पड़ने लगा। सबसे पहले तो पचास-साठ लाख शरणार्थियों को सुरक्षापूर्वक लाने और बसाने की समस्या सामने आई। उसी के साथ-साथ अनेक स्थानों पर सांप्रदायिक उपद्रव और मारकाट को भी नियंत्रण में लाना पड़ा। एक बहुत बड़ी समस्या देशी राज्यों की भी थी, जिनको अंग्रेजी सरकार ने 'स्वतंत्र' बनाकर राष्ट्रीय सरकार के साथ इच्छानुसार व्यवहार करने की छूट दे दी थी। इस प्रकार भारत के ऊपर उस समय चारों तरफ से काली घटाएँ घिरी हुईं थीं और इन सबको संभालने का भार भारत सरकार के गृह मंत्रालय पर था, जिसके संचालक थे-सरदार पटेल। 

देशी राज्यों की समस्या वास्तव में बड़ी विकट थी। अधिकांश राजागण अपने को प्राचीनकाल के बड़े-बड़े प्रसिद्ध राजा-महाराजाओं तथा 'चक्रवर्ती नरेशों' के वशंज समझकर देश का वास्तविक स्वामी स्वयं को ही मानते थे। ऐसे राजाओं का भी अभाव न था, जो मन ही मन अंग्रेजों के हट जाने पर 'तलवार के बल' से देश पर अपनी हुकूमत कायम करने का स्वप्न देखते रहते थे। 

भारत के देशी और विदेशी 'शत्रु' भी समझते थे कि यह समस्या भारत की आंतरिक अवस्था को इतना अधिक डॉवाडोल कर देगी कि वह सचमुच लुंज-पुंज हो जायेगा और तब हमको उस पर दाँत गड़ाने का अच्छा मौका मिलेगा। और तो क्या सामान्य लोगों की आमतौर से यह धारणा थी कि इस समय परिस्थितिवश अंग्रेज भारत को स्वराज्य देकर चले तो जा रहे हैं, पर वे जानते हैं कि पाकिस्तान और देशी राज्यों के कारण कांग्रेसी सरकार शासन को चला सकने में समर्थ न होगी और झक मारकर अंत में उन्हीं को बुलाकर सुरक्षा करानी पड़ेगी।

 पर लोगों के ये सब मंसूबे, अटकलें और भ्रम उस समय हवा में उड़ गये, जब सरदार पटेल ने चार-पाँच महीने के भीतर ही अधिकांश राजाओं को अपनी रियासतें भारतीय राष्ट्र में सम्मिलित करने को राजी कर लिया। उन्होंने शुरूआत अपने प्रांत गुजरात से ही की और वहाँ की कई सौ छोटी-छोटी रियासतों को एक संघ में संगठित करके नवानगर के जाम साहब को उसका राज प्रमुख बना दिया। इसके पश्चात् क्रमशः मध्य भारत, पंजाब और राजस्थान की रियासतों के संघ बनाकर उनको 'भारतीय-संघ में सम्मिलित कर लिया गया। जूनागढ़, भोपाल, बड़ौदा आदि तीन-चार रियासतों के शासकों ने कुछ विरोध का भाव प्रदर्शित किया, पर सरदार ने साम-दाम-दंड-भेद की राजनीति द्वारा बिना किसी प्रकार के बल का प्रत्यक्ष प्रयोग किये, उनकी समस्या को हल कर दिया। 




टिप्पणियाँ