बड़े भाई विट्ठल भाई के लिए सरदार पटेल ने क्या त्याग किया , जानिये ?

बड़े भाई विट्ठल भाई के लिए सरदार पटेल ने क्या त्याग किया , इस लेख में जानिये ?


भाई के लिए सरदार पटेल का त्याग

सरदार पटेल
सरदार पटेल


घर की आर्थिक अवस्था को देखकर वल्लभ भाई ने कॉलेज की पढ़ाई का विचार स्थगित कर दिया और मुख्त्यारी की परीक्षा देकर अदालत में मुकदमों की पैरवी करने लगे। अपनी तीक्ष्ण बुद्धि और परिश्रम के फलस्वरूप उनका काम शीघ्र ही जम गया और अपने कस्बे के नामी मुख्त्यार माने जाने लगे। कुछ समय बाद जब काम लायक रुपया इकट्ठा हो गया तो उन्होंने बैरिस्टरी की परीक्षा पास करने विचार किया और इसके लिए पासपोर्ट' माँगा। 

उनकी अर्जी का जो उत्तर आया, वह उनके बड़े भाई विट्ठल भाई के हाथ पड़ गया, क्योंकि दोनों ही मुख्यारी करते थे। पासपोर्ट के पत्र को पढ़कर विट्ठल भाई ने कहा कि-"मैं तुमसे बड़ा हूँ, इसलिए पहले मुझे बैरिस्टरी कर आने दो, तुम बाद में जाना।" वल्लभ भाई को अपने बड़े भाई की बात युक्तियुक्त जान पड़ी और उनके खर्च का भी भार स्वयं अपने ऊपर लिया। जब सन् १६०८ में वे वापस आ गये तब सन् १६१० में वे स्वयं विलायत गये।

 वहाँ उन्होंने सब प्रकार शौक और व्यसनों से दूर रहकर इतने परिश्रम से पढ़ाई की जिससे आरंभिक परीक्षा में ही सर्वप्रथम उत्तीर्ण हुए। इस पर ५० पौंड (तीन हजार रुपया) का पुरस्कार मिला और पढ़ाई की फीस माफ हो गई। आपने बैरिस्टरी की परीक्षा बड़ी सफलता के साथ उत्तीर्ण की। आपके उत्तरों को पढ़कर एक परीक्षक इतना प्रभावित हुआ कि उसने इन्हें ऊँची से ऊँची सरकारी नौकरी देने की सिफारिश की, पर इनको अपने देश की लगन लगी थी। इसलिए परीक्षोत्तीर्ण होने के दूसरे ही दिन इंगलैंड से रवाना होकर अपने घर आकर बैरिस्टरी करने लगे।

 वर्तमान समय में अनेक परिवारों में भाइयों के बीच जैसा वैमनस्य देखने में आता है, और संपन्न परिवारों में तो प्रायः धन-संपत्ति के बँटवारे के लिए मुकदमेबाजी होती रहती है, उसे देखते हुए सरदार पटेल का भ्रातृ-प्रेम और स्वार्थ-त्याग उच्चकोटि का ही माना जायेगा। जिन लोगों में इस प्रकार की मनोवृत्ति का अभाव होता है, वे संसार में कभी कोई परमार्थ का बड़ा कार्य नहीं कर सकते। 

आगे चलकर भी सरदार पटेल बैरिस्टरी का ऐश्वर्यशाली जीवन त्यागकर गांधीजी के अनुयायी बने और असहयोग आंदोलन में काम करते हुए उन्होंने हर तरह के संकट और कष्ट सहन किए। इन सबमें उनकी यही परोपकार वृत्ति काम कर रही थी। 

इसमें संदेह नहीं कि यही मानव-जीवन को सार्थक करने का मार्ग है। अन्यथा जो व्यक्ति संसार में आकर अपनी तमाम शक्ति और समय केवल अपना तथा अपने परिवार के दो-चार व्यक्तियों का पेट भरने में ही लगा देते हैं, उनका जन्म लेना या न लेना बराबर ही है। 


टिप्पणियाँ