कैसे रहे बचपन से ही निडर और स्पष्ट सरदार वल्लभ भाई पटेल, जानिये ?

इस लेख में कैसे रहे बचपन से ही निडर और स्पष्ट सरदार वल्लभ भाई पटेल जानिये ?

बचपन से ही निडर और स्पष्ट सरदार वल्लभ भाई पटेल

सरदार वल्लभ भाई पटेल
सरदार वल्लभ भाई पटेल

सरदार वल्लभ भाई पटेल (सन् १८७५ से १६५०) यद्यपि गुजरात के एक साधा किसान परिवार में उत्पन्न हुए थे, पर उनका घराना देशभक्ति की दृष्टि से अग्रगामी कहा जा सकता है। उनके पिता झवेर भाई जब बीस वर्ष के तरुण ही थे तो भारत में विदेशी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए 'संत्तावनी गदर' फूट पड़ा।

 यद्यपि उसका प्रभाव गुजरात तक नहीं पहुँचा, तो भी झवेर भाई के दिल में देशोद्धार के अभियान में भाग लेने की उमंग उठने लगी और वह बिना किसी से कहे घर से भाग निकले। उन्होंने उत्तर प्रदेश में आकर नाना साहब और अंग्रेजों का तुमुल संघर्ष देखा और फिर स्वयं भी झाँसी की वीर रानी लक्ष्मीबाई की सेना में भर्ती होकर गोरों से खूब लड़े। 

गदर के ठंडा हो जाने पर भी वे तात्या टोपे आदि विद्रोही नेताओं के साथ मिलकर स्वतंत्रता संग्राम की ज्योति को जगाते रहे और अंत में अपने ही देशवासी इंदौर नरेश के द्वारा पकड़े गये। वहाँ से छुटकारा पाकर ३ साल बाद वे घर लौटे और जीवन-निर्वाह के लिए पुनः अपने गृह-व्यवसाय-कृषि- कार्य में संलग्न हुए।

 उनका चरित्र हमको इटली के उन प्रसिद्ध देशभक्तों के तुल्य ही दिखाई पड़ता है, जो साधारण समय में खेती-बारी करते रहते थे, पर देशरक्षा की पुकार सुनते ही सब कुछ छोड़कर रण-भूमि में पहुंच जाते थे। वल्लभ भाई भी छोटी आयु से काफी निडर और सहिष्णु थे। 

एक बार उनके बड़ा-सा फोड़ा हो गया। उस समय गाँवों के आसपास आपरेशन कर सकने वाले अस्पताल या डॉक्टर तो थे नहीं, इसलिए उसे फोड़ने के लिए देशी तरीके के अनुसार लोहे की शलाका गर्म की गई। पर फोड़े का इलाज करने वाला इतने छोटे बालक पर उसका प्रयोग करने में हिचकिचाने लगा। यह देखकर वल्लभ भाई ने कहा-“वाह, तुम तो फोड़े को फोड़ने में भी डरते हो।" यह कहकर उन्होंने उस खूब गर्म सलाख को उठाकर स्वयं ही फोड़े में घुसा दिया। दर्शकगण छोटे बालक के साहस को देखकर आश्चर्य करने लगे।

 जिस समय वे स्कूल की छोटी कक्षा में पढ़ते थे तो उन्होंने एक लालची मास्टर के विरुद्ध आंदोलन खड़ा किया। बात यह थी कि मास्टर साहब ने स्कूल की नौकरी के साथ ही गाँव में पुस्तकों की दुकान भी खोल रखी थी और सबको इस बात के लिए विवश करते थे कि पढ़ाई की पुस्तकें अन्यत्र से न लेकर उन्हीं की दुकान से ली जायें। यह बात लड़कों को बुरी लगती थी, पर मास्टर के भय से वे कुछ बोल नहीं पाते थे। पर जब यह बात वल्लभ भाई के सामने आई तो उन्होंने इसे अनुचित समझकर स्वीकार नहीं किया और सब लड़कों को उत्साहित करके स्कूल में हड़ताल करा दी। जब लड़के पाँच-छह दिन तक स्कूल नहीं गये तो मास्टर को अपना दुराग्रह त्यागना पड़ा। इस पर वल्लभ भाई ने भी हड़ताल समाप्त करा दी। 

इस प्रकार सरदार पटेल आरंभ से ही अन्याय के विरोधी रहे और साहस के साथ उसका मुकाबला भी करते रहे। उनका यह गुण जीवन के अंत तक कायम रहा और इसी के बल से वे शक्तिशाली अंग्रेज शासकों से भी डटकर लोहा ले सके। उनकी बातचीत ही प्रायः इतनी स्पष्ट और निर्भीक होती थी कि अधिकांश मामलों में उनके विरोधी उनके सामने झुककर अन्याय से हट जाते थे।

 

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