कौन सी रियासत को राष्ट्र में विलय करने में सरदार पटेल को कठिनाई का सामना करना पड़ा ?

क्या आपको पता है कि कौन सी रियासत को राष्ट्र में विलय करने में  सरदार पटेल को कठिनाई का सामना करना पड़ा ?


सरदार पटेल का हैदराबाद का विजय अभियान


सरदार वल्लभभाई पटेल


 सबसे बढ़कर कठिनाई उपस्थित हुई हैदराबाद के मामले में। वह भारत की सबसे बड़ी रियासत थी और मुसलमान उसे अपना गढ़ समझते थे। भारत विभाजन के पश्चात् वहाँ कितने ही कट्टरपंथी मुस्लिम लोग जा पहुंचे और कोशिश करने लगे कि हैदराबाद को पाकिस्तान में शामिल किया जाय। 

उत्तर प्रदेश के कासिम रिजवी नामक व्यक्ति ने वहाँ जाकर 'रजाकार' नाम से एक स्वयंसेवक-दल कायम कर दिया, जिसमें दो लाख हथियार बंद व्यक्ति सम्मिलित थे। हैदराबाद की ४२ हजार सरकारी सेना इसके अतिरिक्त थी। ये सब रियासत के हिंदुओं पर ही अत्याचार नहीं करने लगे, वरन् आसपास के प्रदेशों की भूमि पर आकर भी लूटमार करने लगे। एक-दो बार उन्होंने रेलगाड़ी को रोककर लूट लिया और कई आदमियों को भी मार डाला। सरदार तुरंत ही हैदराबाद के विरुद्ध कार्यवाही करने को तैयार हो गये, पर नेहरू जी तथा अन्य कई मंत्रियों के राजी न होने से रुके रहे। 

पर जब हालत बहुत बिगड़ गई और कनाडा के राजदूत ने नेहरू जी से ईसाई स्त्रियों पर रजाकारों द्वारा आक्रमण करने की शिकायत की, तब कहीं जाकर उसके विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करने का निश्चय किया गया। सरदार ने फौज को आदेश दे दिया और मेजर जनरल जे० एन० चौधरी थोड़ी-सी सेना लेकर शोलापुर के रास्ते से आगे बढ़े।

 उस अवसर पर यद्यपि कासिम रिजवी ने यहाँ तक धमकी दी थी कि अगर भारतीय सेना ने हैदराबाद में प्रवेश किया तो उसको यहाँ डेढ़ करोड़ हिंदुओं की हड्डियों के अतिरिक्त और कुछ न मिलेगा। पर सरदार ऐसी बातों की कब परवाह करते थे? 

उन्होंने निजाम के प्रतिनिधि लायक अली से स्पष्ट कह दिया कि "हैदराबाद की समस्या भी उसी तरह सुलझेगी, जिस प्रकार अन्य रियासतों की सुलझी है। इसका दूसरा कोई मार्ग संभव नहीं है। हम किसी ऐसे स्थान को अपने देश में पृथक नहीं रहने दे सकते, जो हमारे उसी संघ को नष्ट कर देगा, जिसे हमने रक्त और परिश्रम से बनाया है। हम समस्या का मित्रतापूर्ण हल ही चाहते हैं और उसके लिए प्रयत्न कर रहे हैं, किंतु इसका अर्थ यह नहीं कि हैदराबाद को पूर्ण स्वतंत्र रह जाने देंगे। यदि वह स्वतंत्र रहने की अपनी माँग पर अड़ा रहा तो उसे निश्चय ही असफल होना पड़ेगा। 

यद्यपि हैदराबाद के रजाकार और अन्य धर्माध मुसलमान बड़ा जोर-शोर दिखा रहे थे और समझते थे कि भारतीय सेना का हमला होने पर संसार के मुसलमान देश उनका साथ देंगे, पर भारतीय सेना को देखते ही वे सब बगलें झाँकने लगे। कुछ रजाकारों ने दो-तीन दिन तक जगह-जगह पर कुछ लड़ाई की, पर भारत की सुशिक्षित सेना के सामने वे भेड़-बकरियों की भीड़ से अधिक प्रभावशाली सिद्ध न हो पाये। 

तीन दिन के संघर्ष में लगभग एक हजार रजाकार मारे गये, जबकि भारतीय सेना की मृत्यु संख्या नाम मात्र को ही थी। १७ सितंबर १६४८ को हैदराबाद के प्रधान सेनापति एल० एदरूस ने जनरल चौधरी के सामने बाकायदा आत्म समर्पण कर दिया और १८ सितंबर को जनरल चौधरी हैदराबाद के सैनिक गवर्नर नियुक्त कर दिये गये। फरवरी १६४६ में सरदार दक्षिण भारत की यात्रा करते हुए हैदराबाद पहुंचे तो निजाम ने स्वयं हवाई अड्डे पर आकर उनका स्वागत किया और भारतीय-प्रथा के अनुसार हाथ जोड़कर उनका अभिवादन किया, जो उनके जीवन में एक सर्वथा नई और सर्वप्रथम घटना थी। 

हैदराबाद की समस्या को इस प्रकार ३ दिन में हल करके सरदार ने भारतीय सैनिक शक्ति और राजनीति की धाक समस्त देश में जमा दी। इससे वे सब 'तत्त्व' ठंडे पड़ गये, जो शासन बदलने के कारण जगह-जगह सर उठा रहे थे और समझते थे कि हम इन अनुभवहीन शासकों को दबा-धमकाकर अपना उल्लू सीधा करते रहेंगे। 

हैदराबाद की इस शानदार विजय से भारतीय जनता में उत्साह की लहर दौड़ गई और शेष बची रियासतें बहुत शीघ्र भारतीय संघ के अंतर्गत आने को तैयार हो गईं। छह-सात सौ रियासतों का भारतीय संघ में पूर्णतः विलय होकर एक अखंड राष्ट्र का निर्माण कुछ समय पहले तक एक असंभव कार्य समझा जाता था। 

पर सरदार पटेल ने उसे ऐसी खूबी से पूरा करके दिखा दिया कि देश-विदेशों के समस्त राजनीतिज्ञ चकित रह गये। यह कहने में कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं कि जो कार्य जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क ने कर दिखाया और जापान को एक सुदृढ राष्ट्र बनाने में मिकाडो ने जो महान् सफलता प्राप्त की, सरदार पटेल के कर्तृत्व का महत्त्व भी उससे कम नहीं है। 

जर्मनी और जापान तो उस समय चार-पाँच करोड़ की जनसंख्या के छोटे देश ही थे, पर सरदार ने तो उस भारत को एक कर दिखाया, जिसको विविधता और विस्तार की दृष्टि से अनेक लोग एक 'महाद्वीप' की संज्ञा देते हैं। 




टिप्पणियाँ