स्वतंत्रता संग्राम में सरदार पटेल का योगदान

स्वतंत्रता संग्राम में सरदार पटेल का योगदान(Sardar Patel's contribution in the freedom struggle)
Sardar Patel's contribution in the freedom struggle
Sardar Patel's contribution in the freedom struggle



महापुरुषों का यही लक्षण होता है कि वे परमार्थ के लिए स्वार्थ को छोड़ सकने की पूरी सामर्थ्य रखते हैं। जानकार लोगों का कहना है कि यद्यपि कांग्रेस कार्यकारिणी ने सर्वसम्मति से 'अंग्रेजों चले जाओ' वाला प्रस्ताव पास किया था। पर आपस वाद-विवाद में मौलाना आजाद, डॉ० सैयद महमूद और आसफअली की राय यह थी कि महात्मा गांधी और कांग्रेस को यह आंदोलन आरंभ नहीं करना चाहिए था। नेहरू जी और पंत जी भी कुछ अंशों में इस मत के समर्थक थे।

 इन लोगों का कहना था कि इस प्रकार के आंदोलन से अमेरिका और चीन, जो भारत को स्वतंत्र किये जाने के पक्ष में हैं, हमसे सहानुभूति न रखेंगे। वे हमारे इस कार्य को इस निगाह से देखेंगे कि मानो हम युद्ध-प्रयत्नों में बाधा डाल रहे हैं और इस प्रकार हिटलर की सहायता कर रहे हैं।

 पर सरदार पटेल का मत इसके विपरीत था और वे अंत तक १९४२ के 'अंग्रेजों चले जाओ' आंदोलन का पूर्ण रूप से समर्थन करते रहे। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात्- यद्यपि स्वतंत्रता संग्राम में सरदार पटेल ने जितने महत्त्वपूर्ण कार्य किये उनका महत्त्व देश के किसी अन्य नेता के कार्यों से न्यून न था, पर स्वतंत्रता प्राप्त हो जाने के पश्चात् कांग्रेस के सामने जो परीक्षा की घड़ी आई कि वह शासन-संचालन कर सकने की योग्यता रखती है या नहीं, उस समय लोगों ने उनकी वास्तविक शक्ति और योग्यता का अनुभव किया। 

पाकिस्तान के बनते ही वहाँ के हिंदुओं पर जो आपत्ति आई और लाखों व्यक्ति घरबार छोड़कर प्राण बचाने के लिए भारत में चले आये, उनकी सुरक्षा और पुनर्वास की व्यवस्था करना एक बड़ी विकट समस्या थी। एक तरफ देश में जगह-जगह हिंसा और खून-खराबी का तांडव हो रहा था और दूसरी ओर लाखों बेघरबार के व्यक्ति स्त्री-बच्चों को लेकर नगर की सड़कों पर पड़े थे। चारों तरफ भयंकर और निराशापूर्ण दृश्य दिखाई पड़ रहे थे और लोग सोचने लगे थे कि इससे तो अंग्रेजों का राज्य ही अच्छा था।

 पर सरदार पटेल, जिनके ऊप गृह विभाग के मंत्री की हैसियत से इन सब समस्याओं को सुलझाने की जिम्मेदारी थी, जरा भी न घबड़ाये और उन्होंने अपने अदम्य साहस और विलक्षण बुद्धि से कुछ ही दिनों में शांति और सुव्यवस्था स्थापित करके देश को प्रगति के मार्ग पर गतिशील कर दिया। जो पंजाबी बंधु शरणार्थी के रूप में एक भार की तरह प्रतीत होते थे, वे ही थोड़ी-सी आवश्यक सहायता और साधन मिल जाने पर 'पुरुषार्थी के रूप में परिवर्तित हो गये।

 दूसरी काली घटा देशी रियासतों की तरफ से उठी, जहाँ सभी अपने को 'खुदमुख्तार' समझने लगे थे। वास्तव में अगर स्वतंत्रता प्राप्त हो जाने के बाद भी भारत पूर्ववत् सात सौ हिस्सों में बँटा रहता तो उस स्वतंत्रता का मूल्य बहुत कम हो जाता और वे रियासतें कदम-कदम पर देश की प्रगति में रोडा अटकाने वाली ही सिद्ध होतीं। पर सरदार ने ऐसा चमत्कार कर दिखाया कि एक वर्ष के भीतर ही अधिकांश रियासतें स्वेच्छा से भारतीय संघ में विलीन होकर उसका एक उपयोगी अंग बन गईं। 

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