सत्याग्रह आंदोलन में सरदार पटेल की क्या भूमिका रही ?

 सत्याग्रह आंदोलन में सरदार पटेल की क्या भूमिका रही ? इस लेख में जानने को मिलेगा-

 सत्याग्रह आंदोलन में सरदार पटेल की भूमिका

सरदार पटेल
सत्याग्रह आंदोलन में सरदार पटेल की भूमिका 


सरदार जी गांधीजी के अनुयायी सन् १६१७ में ही बन चुके थे और जलियाँवाला बाग हत्याकांड के अवसर पर उन्होंने अहमदाबाद की हड़ताल और जुलूस का नेतृत्व करके राजनीतिक आंदोलन में भाग लेना भी आरंभ कर दिया था। इसलिए सन् १६२० में जब कांग्रेस ने कलकत्ता और नागपुर के अधिवेशनों में 'असहयोग' की घोषणा की तो सरदार ने तुरंत बैरिस्टरी को त्याग दिया। अपने पुत्र-पुत्रियों का सरकारी शिक्षा-संस्थाओं में पढ़ाना बंद कर दिया।

 उसी समय उन्होंने असहयोग करने वाले बहुसंख्यक विद्यार्थियों को राष्ट्रीय शिक्षा प्रदान करने के लिए "गुजरात विद्यापीठ" की स्थापना की और इसके लिए बर्मा तक का दौरा करके दस लाख रुपया इकट्ठा कर लाये। इसके कुछ ही समय बाद नागपुर झंडा सत्याग्रह का अवसर आया।

 मध्यप्रदेश की सरकार ने नागपुर की सिविल लाइन्स में राष्ट्रीय झंडे का जुलूस निकालने पर प्रतिबंध लगा दिया। इस पर वहाँ के कार्यकर्ताओं ने सत्याग्रह आरंभ कर दिया और प्रतिदिन सत्याग्रही स्वयंसेवकों के जत्थे 'झंडा ऊँचा रहे हमारा' गाते हुए पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये जाने लगे। 

नागपुर के कार्यकर्ताओं ने उसके लिए समस्त देश से सहायता की अपील की। इस संबंध में सरदार पटेल के प्रभाव से गुजरात ने बहुत कार्य किया और वे लगातार स्वयंसेवकों के जत्थे और रुपया भेजते रहे। फिर जब सरकार ने आंदोलन के सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं को एक साथ पकड़ लिया तब सरदार स्वयं नागपुर पहुंचकर आंदोलन का संचालन करने लगे। 

उन्होंने उसका इतना जोरदार संगठन किया कि सरकार घबरा उठी और गवर्नर ने सरदार को बुलाकर स्वयं समझौते की बातें की और बिना किसी शर्त के कैदियों को छोड़ कर सर्वत्र झंडा निकाल सकने की माँग को स्वीकार कर लिया। यह झंडा-सत्याग्रह ऐसे अवसर पर आरंभ किया गया था, जब गाँधी जी ने चौरीचौरा हत्याकांड हो जाने के बाद, प्रायश्चित्त स्वरूप समस्त असहयोग आंदोलन स्थगित कर दिया था और इस कारण देश में एक अवसाद की-सी स्थिति पैदा हो गई थी।

 इसलिए क्रियाशील नेता, जिनमें सरदार पटेल अग्रगण्य थे, चाहते थे कि अगर सार्वदेशिक आंदोलन संभव न हो तो कोई स्थानीय आंदोलन ही ऐसा चलाया जाय, जिससे देश में जाग्रति बनी रहे, इसलिए यद्यपि नेहरू जी तथा श्री चित्तरंजन दास जैसे नेता 'झंडा सत्याग्रह' के पक्ष में न थे, फिर भी श्री पटेल ने आरंभ से ही उसका समर्थन किया और बाद में स्वयं उसका संचालन करके उसे सफल बनाया। इससे वास्तव में समस्त देश में जोश की एक लहर फैल गई और अनुत्साह की भावना कुछ अंशों में दूर हो गई।

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